मनोज कुमार -श्रद्धांजलि
बहुत याद आएंगे आप। अपनी तरह के अलग फिल्मकार और कलाकार।
"इक प्यार का नग़मा है" गाना उनकी काबिलियत का आईना है और इस गाने का जो पिक्चराइजेशन है,वह मनोज जी के मन में चल रही उथल पुथल को दर्शाने के लिए काफी है।
उनके इस गाने को मैने कई दफ़ा देखा है, ना सिर्फ़ शानदार कैमरावर्क और एडिटिंग के लिए बल्कि उसके पीछे उनकी फिलॉसफी को समझने के लिए, उनके मन की उद्विग्नता को समझने के लिए, याद कीजिए इस गाने के दूसरे क्रॉस के बाद मुंबई शहर की चकाचौंध और बैकग्राउंड में चलता हुआ LP the Great का ऑर्केस्ट्रा, और बदल बदल कर एडिट किए हुए सीन्स उन्हीं चंद सेकंड्स में मनोज कुमार के अंदर के द्वंद को बताते हैं, ये द्वंद उनका बाद में "रोटी कपड़ा और मकान" के कई दृश्यों और गानों में दिखा खासकर प्यारा गाना "मैं न भूलूंगा "भी कहीं न कहीं इस द्वंद को दिखाता है और उसके बाद "बताओ तुम्हे प्यार कैसे करूं, मुझे प्यार करने की आदत नहीं" तक आते आते ये छिपा हुआ द्वंद, जो वे समाज को बताना चाहते थे!
लेकिन शायद उनके पास और अधिक तरीके नहीं थे अभिव्यक्ति के , इन तीनों चारों गानों और फिल्मों में वो एक खास बेचैनी , एक द्वंद उनके मन का दिखता था , "पूरब और पश्चिम" में पश्चिम के सांस्कृतिक पतन और खोखली सामाजिक संरचना को उभारा था जिसका शिकार 2000 के बाद हम भी हो गए और उसी फिल्म में भारत की संस्कृति, भारत की धरोहर, महिमा को बताने का शायद अंतिम प्रयास हुआ था ।
"क्रांति "उनकी एक पीरियड फिल्म एक कॉस्ट्यूम ड्रामा थी जो उन्होंने इतना बेहतरीन बनाया कि यह फिल्म भी मैं हर दो सालों में एक बार देख ही लेता हूं।
"शहीद भगत सिंह" और "शोर" बनाने वाला फिल्मकार एक बेहतरीन कॉस्ट्यूम ड्रामा बनाएगा, किसी ने सोचा नहीं था, " क्रांति" जब आई थी तब अमिताभ की फिल्मों की तूती बोलती थी और माना जाने लगा था कि लॉस्ट एंड फाउंड और बदले की कहानियों के अलावा बॉक्स ऑफिस पर चलना मुश्किल होता जा रहा है तब मनोज कुमार ने 60 के दशक को तरह का कॉस्ट्यूम ड्रामा बनाया , और संगीत इतना सुमधुर सुदृढ़ रखा कि "क्रांति" एक इंस्टेंट हिट साबित हुई मै 8- 9 साल के बच्चे के तौर पर "क्रांति" का पहला दिन आज भी नहीं भूलता, जितनी दूर तक देखो भीड़ ही भीड़ और लोग सुबह 9 वाला शो देखने आकर 12 वाला शो देखकर ही सही लेकिन देखकर गए , 12 वाले 3 वाला शो देखकर गए।
दिलीप कुमार उनके आदर्श थे उनकी नकल का आरोप उन पर था,लेकिन वो नकल नहीं थी उनका नेचुरल स्टाइल था ,एक सक्षम कलाकार थे।
देखिए बॉलीवुड के main stream के हीरो अपने एक खास स्टाइल के लिए जाने जाते थे और इसलिए उनके कुछ बॉडी लैंग्वेज, एक्सप्रेशंस और ओवरऑल mannerism, उन्हें एक जैसा बनाए रखना पड़ता था यही तो उनका "ब्रांड "था।
बच्चा मैगी नूडल्स या डोमिनोज पिज्जा खाता ही इसलिए है कि उसे एक जैसा ही स्वाद मिलता है, ये ब्रांड की मूलभूत आवश्यकता है, यही हमारे 60 से 90s तक के हीरो हीरोइंस कामयाबी से करते थे !
"क्रांति" में दिलीप कुमार को कास्ट करके उन्हें बहुत बड़ा रोल देकर उन्होंने साबित कर दिया कि वे पटकथा के हिसाब से कलाकारों का चयन करते थे और उनके रोल की लंबाई निर्धारित करते थे,न कि खुद पर पूरा फोकस। जिसके शिकार देवानंद और राजकपूर थे।
मनोज कुमार एक बेहद मंजे हुए कलाकार थे उनकी 1960 और 1970 की फिल्मों की चर्चा मैं इसलिए नहीं कर रहा हूं क्योंकि उन्होंने "पुल" कर लिया हर फिल्म को वे कुछ बेहद कामयाब फिल्मों के हीरो रहे , उनकी दो बदन, साजन, गुमनाम, वो कौन थी आदि फिल्में बताती हैं कि उन्हें स्क्रीनप्ले की बहुत ही अच्छी समझ थी वरना ये फिल्में नायिका प्रधान होने से कोई भी छोड़ देता।
"आदमी" में दिलीप कुमार के सामने डट कर खड़े हुए मनोज , ये अलग बात है कि अभिनय सम्राट दिलीप कुमार से तो उन्हें थोड़ा कम रहना ही था,हर आदमी तो नंबर 1 नहीं हो सकता , और मनोज ने कभी दंभ किया भी नहीं ऐसा कोई कि वे अभिनय सम्राट से टक्कर ले रहे हों उन्होंने अपनी सीमित क्षमताओं के साथ "आदमी" को उभार दिया, "पत्थर के सनम" उनका ऐसा ही कारनामा था अभिनेता के तौर पर।
"उपकार" उनका मास्टर पीस है उस पर क्या लिखूं!!
निर्माता निर्देशक के तौर पर मनोज की तीक्ष्ण बुद्धि का सबूत है यह फिल्म!
प्राण को खलनायक से चरित्र अभिनेता और और एक अनाम गीतकार गुलशन बावरा से ऐसे बेहतरीन गाने लिखवा डाले। कल्याण जी आनन्द जी से उन्होंने बहुत music बनवाया, बाद में LP से उन्होंने बनवाया शोर से!
कवि वर सन्तोष आनंद से इक प्यार का नगमा, मैं न भूलूंगा, बताओ तुम्हे प्यार कैसे, आदि लिखवा कर उन्होंने अपनी काव्यात्मक क्षमताओं का लोहा भी मनवा लिया।
संतोष आनंद से उनका लगाव अप्रतिम था , संतोष आनंद साहब के साथ एक बार मैं कोई 4 घंटे रहा उनसे पूछा मनोज जी से बात होती है? तो संतोष आनंद बच्चों की सी मुस्कान के साथ बोले "अरे रोज़! वह रह ही नहीं पाता मेरे बगैर !!"
ये बात 2008 की है ,सोचिए 1971 से उनका जुड़ाव हुआ था और 2008 और उसके बाद भी रिश्ता कायम था !
60 के अंत में और 70s में उन्होंने दस नंबरी, संन्यासी आदि फिल्मों से Genre भी change किया, मैने संन्यासी देखी थी पिछले साल, अच्छी छेड़छाड़ और चुलबुली भूमिका भी मनोज निभा गए, उसके बाद तो 70 में मनोज एक नए रूप में आ गए।
"शोर" उनकी कालजई अत्यंत संवेदनात्मक फिल्म है, मैं कई ऑस्कर विजेता फिल्मों को देखता हूं तो लगता है कि हमारे पास भी "शोर" जैसी फिल्में हैं ( "कोशिश" भी वैसी ही एक फिल्म थी , मनोज की फिल्म नहीं थी वह)।
"रोटी कपड़ा और मकान" शायद बनाते हुए देर हो गई और फिल्म इंडस्टी के ट्रांजिशन के दौर का शिकार हो गई, ऐसा लगा मुझे, लेकिन मुद्दे बेहतरीन उठाए गए थे , फिल्म का ट्रीटमेंट मनोज ने अमिताभ नुमा करके थोड़ी गड़बड़ कर दी थी।
उसकी भरपाई "क्रांति" से हुई। जो उन्होंने अपने हिसाब से बनाई 70s का कोई तड़का नहीं सिवाय परवीन बॉबी के, क्या गाने थे क्रांति के !!
सुनिए कभी एक एक गाना! "जिंदगी की ना टूटे लड़ी" तो उनका ट्रेड मार्क संग था , एक प्यार का नगमा, बताओ तुम्हे प्यार कैसे, मैं न भूलूंगा वाला genre!
कालांतर में "क्लर्क" भी उन्होंने एक विचारोत्तेजक फिल्म बनाई लेकिन तब तक इंडस्टी और दर्शक पूरे कन्फ्यूज हो चुके थे , याद कीजिए 1981 के बाद फिल्मकारों को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या बनाएं इसलिए लव स्टोरी, बेताब , एक दूजे के लिए , अंधा कानून जैसी कंटेंट और नएपन वाली फिल्में ही चलीं !
अमिताभ की फिल्में भी बमुश्किल चल पा रही थीं 1983 के बाद , कालिया और लावारिस कड़ी की अंतिम सफलताएं थीं, कुली को सहारा मिला दुर्घटना का।
बहरहाल, मनोज कुमार कुमार कृतित्व बेहतरीन था , "पेंटर बाबू" अपने भाई को लेकर बनाई उन्होंने और मीनाक्षी को लॉन्च किया , फिल्म का नैरेटिव 60s वाला होने से फिल्म फ्लॉप हो गई वरना एक संवेदनशील फिल्म थी और गाने भी ठीक थे।
मनोज कुमार ने 90s में कुछ गाने बतौर गीतकार लिखे उन फिल्मों में जो उन्होंने नहीं बनाई थी ,फिल्म थी 1993 की "लुटेरे" संगीत था, आनंद मिलिंद का और यकीन मानिए 93 में भी और अब भी गाना सुनते ही समझआ गया था कि इसे किसी अलग व्यक्ति ने लिखा है। लुटेरे मैं 15 दिन पहले देख रहा था OTT पर!
परसों ही मैने "लुटेरे" के निर्माता- निर्देशक श्री सुनील भाई ( सुनील दर्शन) से FB में पूछा था कि मनोज जी से गाना आपने कैसे लिखवा लिया उनका जवाब था "स्ट्रेंथ ऑफ पर्सनल बॉन्ड" !!
पता नहीं था कि आज ही मनोज जी के जाने की दुःख खबर आ जाएगी, भगवान मनोज कुमार जैसे देशभक्त सपूत को श्री चरणों में स्थान दे और भारतवर्ष में ही उनका पुनर्जन्म हो!
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