डोनाल्ड ट्रम्प -देश प्रेमी या एक सनकी बादशाह ?

डोनाल्ड ट्रम्प -देश प्रेमी या एक सनकी बादशाह ?

Category: World
Tags: Donald trump1 Politics
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7th April 2025 पिछले चंद हफ़्तों में दुनिया बदल गयी है , बल्कि आप इसे यह भी पढ़ सकते हैं कि दुनिया दहल गयी है ! जी हाँ आर्थिक मामले, व्यापार -व्यवसाय को अंतराष्ट्रीय स्तर पर समझने वाले सचमुच में दहल गए हैं , दुनिया के शेयर बाज़ार इस बात के गवाह हैं , दुनिया की मानी हुई आर्थिक संस्थाओं ने आर्थिक मंदी की शंकाओं की संभावना अब 60 % तक बताई है और ये आर्थिक मंदी अन्तराष्ट्र्रीय होगी , दुनिया भर में फैली हुई होगी। यह मंदी इतिहास की भयावह मंदियों में से एक हो सकती है !कारण ? इसका एकमात्र कारण डोनाल्ड ट्रम्प हैं !! वे निर्वाचित राष्ट्रपति हैं , वे अमेरिका फर्स्ट यानी अमेरिका के हित सबसे पहले आएंगे इस नीति का पालन कर रहे हैं , देश प्रेमी हैं , इसमें गलत कुछ नहीं है बल्कि काबिल ए तारीफ़ है ! उनका मानना है कि दुनिया के अधिकांश देश अमेरिका का फायदा उठाते हैं और जो माल अमेरिका उन देशों से खरीदता है उस पर अमेरिका बहुत कम आयात-कर यानी tarrif लगता है , जबकि यही देश जब अमेरिका से कोई सामान मंगवाते हैं तब उस पर जबरदस्त कर लगाते हैं !! ट्रम्प का सोचना है कि अमेरिका क्यों इतनी दयालुता अपनाता है ? और यह नीति अब तक जो चली आई है वह गलत है ! सैद्धांतिक रूप से यह बात सही कही जा सकती है ! लेकिन आयात कर या निर्यात कर (यानी tarrif ) इतना सीधा सरल मामला नहीं है, न ही अमेरिकी सरकार कभी भी इतनी दयालु या इतनी नादान रही कि वह अमेरिका में आने वाले सामान पर तो आसानी से कम आयात कर लगाए और अमेरिका से भेजे जाने वाले सामान पर अधिक कर लगने दे !! दरअसल यह सीधे-सीधे मांग और पूर्ती के नियम के तहत होता है। एक आसान उदाहरण से समझें कि भारत में पेट्रोलियम उत्पाद इतने नहीं निकाले जाते कि हमारी ईंधन की ज़रुरत पूरी हो इसलिए हमारी सरकार पेट्रोलियम उत्पादों को आसानी से भारत में आने देती है , लेकिन उसी जगह गेहूं चावल आदि भारत में आयात नहीं किया जा सकते दालों और तेलों की भारत में कमी है इसलिए इनका आयात भारत आसानी से होता है। अमेरिका का भी यही हाल है कि जिन सामग्रियों आवश्यकता अधिक है, काफी कम कर लगाकर मंगवाते हैं दरअसल अमेरिका में सामाजिक सुरक्षा इतनी ज्यादा है कि वहां लेबर का खर्चा बहुत ज्यादा है , यहाँ पर लेबर से मतलब हर स्तर के मैकेनिक्स ,फिटर, इंजीनियर्स,अधिकारियों -कर्मचारियों , मैनेजर्स आदि से है। ज़ाहिर है जहाँ मैनपावर महँगी होगी वहां प्रोडक्शन की लागत ज्यादा ही होती है और उस पर तुर्रा ये कि मैनपावर एक ऐसा खर्चा है बढ़ना आवश्यक है क्योंकि महंगाई हर साल बढ़ती है ,लोगों के वेतन आदि बढ़ाने ही पड़ते हैं , ऐसे हालातों में अमेरिका प्रोडक्शन घटा वर्ना आप खुद सोचें कि इतना विकसित देश , इतने जागरूक लोग ऐसी कैसे अपना उत्पादन घटा लेंगे ? उन्हें बाहर से मंगवाना सस्ता पड़ता है इसलिए आयात करते हैं ! बहुत से खनिज तत्व और मेटल्स वहां पैदा नहीं होते या कम होते हैं इसलिए आयात होता है। प्राकृतिक तेल और गैस के मामले में अमेरिका ज़रूर पूरी योजना के साथ आत्म निर्भर हो गया है! कहने का अर्थ ट्रम्प का यह सोचना कि अमेरिका के लोग शौक से आयात करते हैं और दूसरे देश उसका बेजा फायदा उठाते हैं यह हाइपोथिसिस ही गलत है , इतने मूर्ख नहीं हैं अमेरिका के लोग ! मैंने सनकी क्यों समझा डोनाल्ड ट्रम्प को ? देखिये पूरी दुनिया का एक बना बनाया सिस्टम है जिसमे लोग व्यापार कर रहे हैं , जो असंतुलन होता है उसे बीच-बीच में द्विपक्षीय ट्रीटी यानी समझौते करके या FTA ( फ्री ट्रेड एग्रीमेंट ) या MFN (Most Preferred Nation ) आदि विकल्पों से आयात निर्यात कर की समस्याओं को सुलझाया जाता रहा है ! यह संतुलन इतना सही है, कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से सारे देश एक दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करते हैं व्यापार भी होता है और दुनिया भर में लोगों को सहूलियत होती है ! रोजमर्रा के बहुत से सामान पूरी दुनिया की जनता ऐसे ही कच्चे माल से भोग पाती है,जब यह माल विभिन्न देश एक दूसरे को निर्यात करते हैं ! इन आयात-निर्यात की सामग्रियों में फिनिश्ड गुड्स यानी उपयोग-उपभोग के लिए तैयार वस्तुएं भी होती हैं और कच्चा माल या अर्ध परिष्कृत सामग्री (इंटरमीडिएट्स) भी होते हैं सब पर अलग तरह से tarrif लगता है ! शत्रु देश भी एक दूसरे को विभिन्न वस्तुएं और कच्चा माल आदि देते लेते रहते हैं कुछ अतिवादियों जैसे उत्तर कोरिया आदि को छोड़कर . उत्तर कोरिया, रूस, ईरान आदि पर अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबन्ध लगाए हुए हैं । बाकी देश एक दुसरे के साथ व्यापार करते रहते हैं ये 3 भी करते हैं लेकिन अभी सीमित हैं। तो अमेरिका दुनिया का दादा है, बड़ी अम्मा है !!और हमेशा रहा है !! ऐसे में उसका यह कहना किदूसरे देश उसके यहाँ माल बेचते हैं और फायदा उठाते हैं, यह सोच, यह कहना गलत है वर्ना इतना मूर्ख नहीं है अमेरिका या उसके लोग कि 1997 से 2024 के बीच 50 लाख रोज़गार के अवसर ख़तम हो गए क्योंकि सामग्री आयात होने लगी और अमेरिका में प्रोडक्शन बंद कर दिया गया !! ट्रंप का यह सोचना सही है की मात्र 10 % Tarrif बढ़ा देने से उन्हें 728 बिलियन डॉलर यानी 63 लाख करोड़ रुपये प्रति वर्ष जीडीपी वृद्धि का फायदा हो जायेगा, 28 लाख नौकरियां अधिक पैदा होंगी ! लेकिन क्या यह सब ऐसी knee jerk यानी ऐसी झटकेदार स्टाइल से हो पायेगा ? दुनिया की अर्थव्यवस्था हिचकोले लेने लगी है। नया ट्रेड वॉर शुरू हो गया है जब चीन ने भी बदले की कार्यवाही करते हुए 10 अप्रेल से अमेरिका पर टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी , अभी और भी देश ऐसा करेंगे ! ट्रम्प को समझना होगा कि यह सिर्फ मिलिट्री की ताकत का मामला नहीं है , जहाँ आप लोगों को द्वारा धमका कर अपना काम निकाल लें। अब चीन एक बड़ी शक्ति है , भारत सहित यूरोप के देशों को हलके में नहीं लिया जा सकता। कई देशों के लिए आयात निर्यात करो या मरो का मामला है और ट्रम्प ने लोगों को उद्वेलित कर दिया है, अमेरिका (ट्रम्प ) की यही सनक यूक्रेन युद्ध में दिखाई दी, नतीजा सामने है 2 हफ़्तों में पुतिन के साथ मुहब्बत खतम !! खुद अपने देश अमरीका में ट्रम्प ने आते ही सरकारी नौकरियों पर तलवार चला दी साथ दिया उनके व्यापारी मित्र मस्क ने DOGE (डिपार्टमेंट ऑफ़ गवर्नमेंट एफिशिएंसी )नाम का यह विभाग इसलिए लाया गया ताकि सरकारी कर्मचारी और अधिकारी की छंटनी की जा सके क्योंकि काम नहीं करते, सिर्फ वेतन लेते हैं और उनकी संख्या ज़रुरत से ज्यादा है ! DOGE बहुत से ठेके आदि भी निरस्त कर चुका है और करेगा , USAID विश्व में मदद करने वाली एक बड़ी संस्था थी उसे भी रातों रात इस DOGE ने बंद किया है ! मैं फिर दोहराता हूँ कि अमेरिका फर्स्ट या अपने देश से प्रेम उसका भला सोचना गलत नहीं है लेकिन बने बनाए तंत्र को एक झटके से खत्म करने से अराजकता का खतरा बढ़ता है,अमेरिका अपनी तमाम दादागिरी और स्वार्थ के बावज़ूद एक जिम्मेदार देश कहा जा सकता है जिसने दुनिया के बड़े हिस्से में लोकतंत्र की स्थापना की कोशिश की। पिछले पूरी सदी और उसके पहले वाली सदी में तकनीकी उन्नयन में अमेरिका का खासा योगदान रहा है , लेकिन ट्रम्प का इस तरह अचानक सब कुछ बदल देना उनकी सनक को दिखता है , ट्रम्प एक कामयाब बिजनेसमैन हैं और उन्हें कम से कम आइडेंटिटी क्राइसिस तो नहीं ही है (यानी अपनी पहचान उन्हें दुनिया को दिखाकर दम्भ भरने की आवश्यकता नहीं है ) लेकिन पता नहीं किस जल्दी में ट्रम्प हैं ! ऐसे व्यवहार को सनक ही कहा जाएगा , क्योंकि ये सारे कदम अमेरिका धीरे धीरे भी उठा सकता था। ताकि उनकी अपनी इंडस्ट्री को भी खुद का उत्पादन बढ़ाने एक मौका मिलता और दूसरे देश भी कुछ संभल पाते। तमाम आर्थिक सूचकांक एक बड़ी आर्थिक मंदी की तरफ इशारा कर रहे हैं , ट्रम्प ने यूक्रेन युद्ध रोकने का काम जब शुरू किया था तब लगा था एक व्यापारी हैं तो शान्ति के फायदे जानते हैं ट्रम्प !! लेकिन वहां भी टीवी कैमरा के सामने उनकी सनक दिखाई दी जब ज़ेलेन्स्की से वे लड़ रहे थे ! और उस उतावलेपन की वजह भी पता चल गयी बाद में, कि ट्रम्प को यूक्रेन की बहुमूल्य धातुओं पर कब्ज़ा चाहिए था ! अंत में यह बात भी गौर करने लायक है कि ग्लोबलाइजेशन यानी वैश्वीकरण के लिए 1987 से लेकर 2010 तक किस तरह से भारत समेत कई विकासशील देशों को अपने बाज़ार खोलने के लिए मजबूर किया जा रहा था और आज वही अमेरिका अपने बाज़ार बंद करना चाह रहा है और उसकी इस सनक से कई देश अब ग्लोबलाइजेशन से दूर ले जाकर अपने बाज़ारों को सीमित करेंगे !!

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